Saturday 10 July 2021

ज़िंदादिली

 पिछले हफ़्ते जब BMC की गाड़ी आकर अन्ना के ठेले का सारा सामान उठा कर ले जा रही थी, तब अन्ना का गला भर आया था। पिछले तीन बरस में जिसे हमेशा मुस्कुराते देखा हो, उसे उदास देखना आसान नहीं था। 

अन्ना के यहाँ चाय पीने का लुत्फ़ अपना ही है। दफ़्तर के कैफेटेरिया में उपलब्ध बकबकी सी चाय से कहीं बेहतर होती है अन्ना की केतली की गर्म चाय।

अन्ना का ठेला भी कोई आम ठेला नहीं है। अन्ना का ठेला दरअस्ल एक स्कूटर है जिस की पिछली सीट पर चाय का बड़ा डिब्बा धरा रहता है।

हम मित्रों ने अन्ना की कमाई के कईं कयास लगाए। बहुत कमाई होगी अन्ना की। इन चर्चाओं का मुख्य आधार अन्ना के ठेले से कुछ दूरी पर खड़ी कार है, जिसे  अन्ना एक स्टोर की तरह इस्तेमाल करते हैं। इस कार में अन्ना कंफेक्शनरी का बड़ा जखीरा रखते हैं।

कमीज़ के खुले बटन, घुंगराले बाल, मूछें और मुस्कान अन्ना की पहचान हैं। इलाके के सभी लफ़ंडर चाय पीने यहीं आते है।

कुछ इंटेलेक्चुअल किस्म के लोग अन्ना के ठेले के विरोधी भी हैं क्यों कि ठेला गैर कानूनी है। लेकिन बरसों से चला यह रोज़गार उनके घर चलाने का एक मात्र ज़रिया है। हर मौसम में उपलब्ध पेट भरने का जुगाड़ दरअस्ल गरीबों के लिये भी एक वरदान जैसा है।


आज ऑटो से उतरते ही कान में अन्ना की आवाज़ पड़ी। दूर से इशारा करके बुलाया। आज अन्ना की बेटी का जन्मदिन है। सभी को बुला बुला कर मुफ़्त समोसा खिला रहे हैं। इसे आप मार्केटिंग स्ट्रेटेजी का नाम भी दे सकते हैं। मेरे लिये यह उनकी रिश्ते निभाने की एक कोशिश है। समोसा गर्म भी है और स्वादिष्ट भी। उस दिन, जब BMC की गाड़ी उनका सारा सामान उठा ले गयी थी, तब भी इतना नुकसान नहीं हुआ होगा जितना आज वो समोसों में खर्च कर रहे हैं। बड़ी बात यह कि समोसे खुद नहीं बना रहे, एक पड़ोस की दुकान से आर्डर किये हैं, ताकि वो सब से बात कर सकें।

आज अन्ना की मुस्कान रोज़ से दोगुनी है।

किसी ने सत्य कहा है कि '#ज़िन्दगी_ज़िंदादिली_का_नाम_है'।

😊

Friday 16 October 2020

ज़िन्दगी_calling

 #ज़िन्दगी_calling


दफ़्तर की मसरूफ़ियत में कभी कभी फ़ुर्सत के कुछ लम्हे मिलते हैं जो अक्सर चाय के साथ फोन पर ही बीतते हैं। दफ़्तर में मैं अक्सर फोन नहीं उठा पाता और अगर कोई जाने पहचाने नम्बर से मिस्ड कॉल हो तो इन्ही लम्हों में कॉलबैक किया करता हूँ।

 ऐसे ही एक ब्रेक में चाय की पियाली के साथ फोन पर मिस्ड कॉल्स देख रहा था कि अचानक फोन बजने लगा। फोन पर मेरा ही नाम मेरे ही नम्बर के साथ उभरने लगा।  ज़ाहिर है कि मैं हैरान था।  फोन उठाया तो मीठी सी आवाज़ में उसने कहा, "हेलो, मैं ज़िन्दगी बोल रही हूँ, क्या मेरी बात नकुल गौतम जी से हो रही है?"


"जी कौन बोल रही हैं", मैंने सुनिश्चित करना चाहा।

"जी मैं ज़िन्दगी बोल रही हूँ ", जवाब और भी मीठी आवाज़ में था।

"जी हाँ, मैं नकुल गैतम ही बोल रहा हूँ"

"नकुल जी, क्यों कि आप लम्बे समय से हमारी सेवाएं ले रहे हैं, सो यह एक फीडबैक कॉल है। आपके पाँच मिनट लेना चाहती हूँ। क्या यह उचित समय रहेगा?"

"जी हाँ, कहिये", मैंने अपनी घड़ी को देखते हुए कहा।


"आपको बता दूँ कि आपकी सभी बातें रिकॉर्ड की जाएंगी। क्या आप इसके लिये अनुमति दे सकते हैं", उसने अनुरोध किया।

"जी बिल्कुल", मैं और भी आश्चर्य चकित हुआ।

 "क्या मैं जान सकती हूँ कि आपको हमारी सेवाएं कैसी लग रही हैं" 

"मैं काफी हद तक संतुष्ट हूँ", असमंजस में पड़ते हुए मैंने कहा।

"एक से पाँच के स्केल पर, जिसमें 'एक' मतलब बिल्कुल संतुष्ट नहीं और 'पाँच' मतलब बिल्कुल संतुष्ट, आप हमें गुणवत्ता में क्या स्थान देंगे"।

"यह तो दुविधा में डाल दिया आपने, आप किसी विशेष सेवा की बात करें। सभी सेवाओं को कैसे एक अंक में तौल सकते हैं", मैं उलझन में था।

"जी आप औसतन अंक दे सकते हैं; खुशी, समृद्धि, व्यवसाय, संतुष्टि, प्रेम, परिवार इत्यादि सभी को ध्यान में रखते हुए।"


"जी मैं बिल्कुल संतुष्ट हूँ, मैं पाँच अंक देना चाहूँगा", मैंने विनम्र होने की कोशिश में कहा।

"जी शुक्रिया। क्या मैं जान सकती हूँ कि आप को हमारी कौन सी सेवा सबसे अच्छी लगी", ज़िन्दगी ने अगला सवाल किया।

"यह तो बहुत कठिन है। सब सुविधाओं में एक को चुनना बहुत कठिन है, मैंने सोचते हुए कहा।

"जी खुशी, प्रेम, क्रोध इत्यादि संवेदनाएं, परिवार, प्रकृति जैसी सुविधाएं, बदलते मौसम, अनेकों रंग, हज़ारों तारे, अगणित स्वाद  इत्यादि बहुत सी चीज़ों में से सबसे उपयोगी आप किसे मानते हैं?"

"प्रेम और परिवार", मैंने गहरी साँस लेकर कहा।

"जी शुक्रिया, आप को हमारी कौन सी सुविधा या किस सेवा से सबसे अधिक शिकायत रही है", अगला प्रश्न और उलझन भरा था।

"जैसे..." मैंने विकल्पों की जिज्ञासा में पूछा।

" जैसे कष्ट, विछोह, परेशानियाँ, अपराध, सामाजिक दबाव, दर्द इत्यादि"

"जी इनमें से ऐसा कुछ नहीं जिससे मुझे शिकायत हो। ये सब तो जीवन को रोमांचक बनाते हैं। अगर मुझे शिकायत है तो सिर्फ इस बात से कि मुझे मेरी मेहनत के अनुसार फल नहीं मिलता", मैंने बहुत सोच विचार के बाद कहा।

"जी शुक्रिया, आपकी मेहनत का फल आपकी इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है।"

"क्या आप अपने प्रियजनों को हमारी सेवाओं का लाभ उठाने की सलाह देंगे", अगला प्रश्न था।

"जी वे सब तो आपकी सेवाएं ले ही रहे हैं। इस प्रश्न का क्या औचित्य है", मैं असमंजस में था।

"जी हमारे कैटालॉग के अनुसार यही अगला प्रश्न है। क्या आप उन्हें फिर से हमारी सेवाओं की सलाह देंगे"।

"जी बिल्कुल। जीवन बहुत खूबसूरत है। अगर यह नहीं होता तो हम इस पर चर्चा ही कैसे करते। जैसा कि किसी विद्वान ने कहा है, ज़िन्दगी में सबसे महत्वपूर्ण ज़िन्दगी ही तो है", मैंने उत्साहित होकर कहा।

"क्या आप कोई प्रश्न करना चाहते हैं", अगला प्रश्न था।

"जी, मैं कौन हूँ, परम सत्य क्या है", मैंने पूछा।

"जी इस प्रश्न का उत्तर देने की हमें अनुमति नहीं। इस प्रश्न का उत्तर ढूंढना आपका उत्तरदायित्व है", उत्तर मिला।

"तो यह बता दीजिये कि मृत्यु के बाद क्या होता है", मैंने प्रश्न किया।

"जी मृत्यु भी जीवन का ही भाग है", उत्तर मिला।

"मतलब, कृपया विस्तार से बताइये", मैंने फिर प्रश्न किया।

"जी मुझे एक ही प्रश्न का उत्तर देने की अनुमति है। लेकिन क्योंकि आप हमारे लकी कस्टमर हैं, आपको इसका उत्तर मृत्यु के ठीक पहले मिल जाएगा"

"लकी कस्टमर? ऐसा क्यों", मैं ने खुश होकर पूछा।

"जी, हमारे सभी कस्टमर लकी हैं। आपको जीवन मिला यह आपकी खुशनसीब है", बहुत ही मीठी आवाज़ में उत्तर मिला।

"जी शुक्रिया। मैं समझ गया", मैंने संतुष्ट होते हुए कहा।

"जी आपकी इस बातचीत को हमने रिकॉर्ड किया है। यदि आप इस के कुछ अंश अपनी फ़ेसबुक वॉल पर शेयर करेंगे तो हमारी तरफ से आपको कैश बैक दिया जाएगा", आवाज़ और मीठी हो गयी।

"कैश बैक? वह कैसे" मैंने पूछा।

"जी आपके मित्र इसे पढ़ेंगे और इसे लाइक, शेयर करेंगे। आप मुस्कुरायेंगे। मुस्कुराहटें जीवन का सबसे कीमती उपहार हैं। आप मुस्कुराहटें बांटिए आपको भी मिलेंगीं", उत्तर मिला।

"जी बहुत बहुत शुक्रिया, आप से बात करके अच्छा लगा", मैंने हँसते हुए कहा।

"जी हमें भी। अपना कीमती समय देने के लिए शुक्रिया। आपका दिन शुभ हो", कहते हुए फोन कट गया।

मैंने चाय का पियाला रक्खा और टाइप करने बैठ गया।


नकुल गौतम

Tuesday 1 September 2020

तथास्तु

 

कहते हैं कि ईश्वर केवल तथास्तु कहना जानते हैं। ईश्वर हर पल कहीं न कहीं किसी की बात सुन कर तथास्तु कहते रहते हैं। ऐसे में हर व्यक्ति की बारी कब आ जाये, कहा नहीं जा सकता।


शर्मा जी के जीवन में दो बार ऐसा हुआ और दोनों ही बार वो पछताये।

पहली बार ऐसा तब हुआ जब वे कॉलेज में थे और अपनी रईस प्रेमिका को रिझाने के लिये उन्होंने झूट कह दिया था कि वो किसी रियासत के राजकुमार हैं। जब कॉलेज खत्म होने को था तब वे सच सामने आ जाने के भय से ग्रसित हो गये। घबराहट में एक दिन सोचने लगे कि भांडा फूटने से पहले ही प्रेमिका विवाह के लिए इनकार कर दे तो वे बच जायें। दुर्भाग्यवश इसी दिन ईश्वर के यहाँ उनकी हाजिरी थी। ईश्वर ने तथास्तु कहा और अगले प्रार्थी की ओर मुड़ गये। अगले ही दिन प्रेमिका सॉरी कह निकल गयी। शर्मा जी वास्तव में ऐसा चाहते नहीं थे। वे तो बहुत प्रेम करते थे। बस घबराहट में ऐसा माँग बैठे थे। बहुत पछताये लेकिन अब तो चिड़िया खेत से फ़ुर्र हो चुकी थी। 
कई बरस बाद कल फिर उनकी बात पर ईश्वर ने तथास्तु कहा। सोते समय कॉलेज के दिनों को दिल में टटोलते हुए वे सोच रहे थे कि काश उसकी कोई खबर मिल जाय। ईश्वर ने फिर तथास्तु कहा। अगले दिन नाश्ते के बाद चाय के साथ अखबार पलटते हुए उनकी नज़र उस जानी पहचानी सूरत पर पड़ी। विवरण पढ़ते ही उन्होंने ऊपर सिर उठाया और ईश्वर को कोसने लगे।
अखबार पर तस्वीर के साथ विवरण था, "आप को भारी मन से सूचित किया जाता है कि हमारी माता जी का देहांत हो गया है। शोक सभा कल शाम को गुजराती समाज कल्याण भवन में आयोजित होगी। कृपया फोन न करें।

नकुल


Tuesday 18 August 2020

खुदकुशी

पहाड़ी इलाकों की खासियत है कि दूर दूर तक साफ देखा जा सकता है। बहुत सी पहाड़ियाँ आसपास हों तो एक पहाड़ी की चोटी से दूसरी पहाड़ी पर आराम से दिखायी देता है। किशोरवस्था में नज़र भी तो कमाल हुआ करती थी।

इस पहाड़ी पर किशोरावस्था में रमेश घंटों इंतजार किया करता था। सामने की पहाड़ी की चोटी पर सपना का घर था जिसे वह घर से निकल कर स्कूल जाते हुए रोज़ देखा करता था। इस पहाड़ी पर रमेश को सपना नहीं देख सकती थी, लेकिन रमेश रोज़ उसे देखता था।

जीवन के इस पड़ाव पर कोई महत्वाकांक्षा, कोई आकर्षण, कोई सम्भावना बाकी नहीं रही थी। सब कुछ तयशुदा सा हो रहा थी। कोई उत्साह, कोई उमंग नहीं थी। पाने की इच्छा भी नहीं रही थी और ना उम्मीद ही थी। यही सोचते हुए रमेश धीरे धीरे पहाड़ी पर चढ़ रहा था। रमेश इसी पहाड़ी से कूद कर जान देने जा रहा था।

पहाड़ी की चोटी पर पहुँच कर उसने एक नज़र सपना के घर की ओर डाली और महसूस किया कि सब कुछ बदल सा गया था। जहाँ सिर्फ एक घर हुआ करता था, वहाँ पूरा मोहल्ला था। नज़र भी अब चुस्त नहीं रही। चाह कर भी वह सपना का घर ठीक से नहीं देख पा रहा था।

पहाड़ी से छलाँग लगाने से पहले उसने इस पहाड़ी को पलट कर देखा। दूर एक कोने में एक लड़का गहरी नीली स्वेटर पहने दिखायी दिया। रमेश दबे पाँव उस ओर गया। उस लड़के का ध्यान रमेश पर ज़रा भी नहीं गया। कितनी बेपरवाह होती है यह उम्र। लड़के से कुछ दूरी पर पहुँच कर उसने महसूस किया कि वह लड़का कितनी ही उम्मीद से सामने की पहाड़ी पर नज़र टिकाये बैठा था। अचानक लड़के के होंठों पर मुस्कान उभर आयी। रमेश ने देखा कि सामने वाली पहाड़ी की चोटी से एक लडक़ी बस्ता उठाये जा रही थी। अचानक रमेश की नज़र एकदम साफ़ हो गयी। उसे अब सपना का घर भी साफ़-साफ़ नज़र आ रहा था।

उस लड़के की नज़र लड़की के कदमों से कदम मिला रही थी। रमेश पीछे हट गया और पहाड़ी से लौट आया। मेरी नाउम्मीदी को किसी और की संभावनाओं पर अंकुश लगाने का कोई हक़ नहीं।

रमेश अब अक्सर छुप छुप कर इस लड़के को देखने पहाड़ी पर जाता है। वह उस लड़के की संभावनाओं में अपने जीवन को खोजने लगा है।

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नकुल गौतम

Thursday 2 July 2020

इमोटिकॉन


उस दिन फेसबुक पर एक नया इमोटिकॉन आया था। यह इमोटिकॉन एक दिल को गले लगाए हुए दर्शाता है। इत्तफाकन रिद्धिमा ने भी नयी तस्वीर फेसबुक पर डाली और रमेश का ध्यान उस इमोटिकॉन पर उस तस्वीर को देखने के बाद ही गया। रमेश ने उस नये इमोटिकॉन का बटन दबाया और उसकी तस्वीर को अंगूठे से ऊपर की ऊपर की ओर धकेलते हुए आगे बढ़ गया।

रिद्धिमा वहीं अटक सी गयी थी। इस इमोटिकॉन का मतलब था कि "मुझे तुम्हारी फिक्र है"। रिद्धिमा शायद बरसों से रमेश से यही तो कहना चाह रही थी। या कि रमेश से यह बात सुनने के लिये तरस रही थी। उसने यह ध्यान ही नहीं दिया कि रमेश इस नये इमोटिकॉन का इस्तेमाल यूँ ही, हर पोस्ट पर किये जा रहा है। रिद्धिमा उस दिन एक दिल के आकार के सॉफ्ट टॉय के साथ घंटों खयालों में रमेश के साथ बतियाती रही। तस्वीर पर हमेशा की तरह आया विनोद का "मिस यू" कॉमेंट आज भी अनुत्तरित ही रहा।

नकुल

Monday 9 March 2020

महक


"वाह! क्या महक है।"

मिठाइयों की महक आयी तो मिसेज़ शर्मा खिड़की से बाहर झाँकते हुए बोलीं। शर्मा परिवार क्रेसेन्ट अपार्टमेंट की पाँचवीं मंज़िल पर आलीशान फ्लैट में रहता है। सामने एक बस्ती है जहाँ बीस बाइस परिवार रहते हैं। इन घरों के मर्द आस पास की सोसाइटियों में माली या चौकीदार हैं तो महिलाएं घरों में काम कर के अपने परिवार चलाने में योगदान करती हैं।

लो, तुम्हारा वेज शिज़वान मंचूरियन आ गया। डोर बेल सुनते ही शर्मा जी घर के मुख्य द्वार की तरफ बढ़े।

मिसेज़ शर्मा वहीं खिड़की पर अपनी निगाहों से कुछ टटोल रही थीं। शर्मा जी भी उनके साथ आ खड़े हुए।

"त्योहार मनाना तो कोई इन गरीबों से सीखे। नवरात्रि में डांडिया हो, मकर सक्रांति में तिल-गुल या होली-दीवाली, ये लोग सब मिल जुल कर मनाते हैं। धूम धाम से। और एक हम लोग हैं जो इन बड़ी सोसाइटियों में मानो क़ैद हो कर राह गये हैं।" मिसेज़ शर्मा खुशी से बस्ती से उठती महक का मज़ा लेते हुए बोलीं।

"इन सब ढकोसलों के लिए खूब खर्च करते हैं ये लोग मगर कहने को गरीब हैं"। - शर्मा जी मंचूरियन का डिब्बा खोल कर मिसेज़ शर्मा की ओर बढ़ाते हुए बोले।

"त्योहार तो हम गरीबों के लिये होते हैं साहिब"।

पीछे सेंटर टेबल की धूल झाड़ते हुए बाई के हाथ शर्मा जी की यह बात सुन कर ठिठक गये थे।

"अमीर का तो जब दिल किया, पकाया मंगवाया और खा लिया। हम गरीब तो हर त्योहार के बाद अगले त्योहार का इंतज़ार करते हैं कि कुछ अच्छा खाएंगे।

सच कहूँ तो ये नियम या आपकी भाषा में ढकोसले, हम गरीबों के मन बहलाने के लिये ही बनाये गए हैं।"

मिसेज़ शर्मा बाई की संवेदना समझ कर मुस्कुरा रही थीं तो शर्मा जी की निगाहें शर्म से झुक गयी थीं। वेज शिज़वान मंचूरियन उस महक के सामने फीका पड़ गया था।

Friday 31 January 2020

कच्चा_आम


लोग उसे कच्चा आम कहते थे।

पाँच बरस की उम्र में माता-पिता को खो देने का ग़म वो बर्दाश्त नहीं कर सका और उसका मानसिक विकास वहीं थम गया। हमेशा कच्चा आम चाटते हुए दिखाई देता। जहाँ मन करता पत्थर, कोयले या चॉक से दीवारों पर सुन्दर चित्र बना देता। माता पिता के साथ माता के मंदिर जाता रहा होगा, सो 'जय माता की' उसका तकिया कलाम बन गया था।

मंदिर किसी भी देवता का हो, दरगाह हो कि गुरुद्वारा, वो हर जगह अपने अंदाज़ में 'जय माता की' के नारे लगाता रहता।

तब वो शायद बारह बरस का था । उस दिन बर्फ गिर रही थी और वो हनुमान मंदिर की सीढ़ियों पर माता के जयकारे लगा कर किसी से प्रसाद मिल जाने की उम्मीद में बैठा था। सीढ़ियों पर सामने की पहाड़ी का नज़ारा वो चॉक से उकेर चुका था। तभी वो पहली बार उसे मिली थी और प्रसाद का स्वादिष्ट लड्डू दे गयी। उसने एक पल भी गँवाये बिना भूखे पेट मे लड्डू उतार दिया और "जय माता की" का नारा लगाया। भूख का असर कम हुआ तो उसने देखा, वो बच्ची कहीं नहीं दिख रही थी। "इतनी ठंड में भी स्वेटर नहीं पहनती", वो बड़बड़ाने लगा।

"स्कूल में छुट्टी होगी क्या...
सर्दियों में कच्चे आम क्यों नहीं मिलते...
वो इतनी सुबह घर से क्यों निकली होगी..."
वो अपनी कुटिया तक बड़बड़ाता हुआ गया था।

अब वो सत्तर साल का हो चुका है।

उसकी कुटिया के पास एक भवन में उसकी चित्रकारी की प्रदर्शनी बारह महीने लगी रहती है। जो भी देखने आता है, उसे भोजन, लड्डू, जरूरत के मुताबिक कपड़े या कच्चे आम दे जाता है।

"बाबा! आ जाइये।"
सुबह से जारी बर्फबारी के बीच रोज़ की तरह वो आज भी आयी। वही गोटे वाली चुनरी और लाल कुर्ती पहने और हाथ में प्रसाद लिये।
वो हमेशा की तरह खाने के लिये टूट पड़ा।
जब तक प्रसाद खाया रोज़ की तरह बड़बड़ाता रहा।
"स्वेटर क्यों नहीं पहनती...

स्कूल क्यों नहीं जाती...
रोज़ कहाँ गायब हो जाती है..."

फिर वो चिल्लाया

"सुनो!
कोई नहीं मानता कि यहाँ लोग आकर मुझे खाना देते हैं...
सब इस चित्र भवन को खंडर कहते हैं...
कोई नहीं मानता कि तुम यहाँ आती हो"...

फिर शांत होते ही मुस्कुराया और बड़बड़ाने लगा
"सर्दियों में कच्चे आम कहाँ से ले आती होगी"

वो खंडर के पत्थरों पर लेट गया और आम चाटने लगा। ~नकुल गौतम मौलिक एवं स्वरचित

ज़िंदादिली

 पिछले हफ़्ते जब BMC की गाड़ी आकर अन्ना के ठेले का सारा सामान उठा कर ले जा रही थी, तब अन्ना का गला भर आया था। पिछले तीन बरस में जिसे हमेशा मुस...